2 41.4 काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण (DISPERSION OF WHITE LIGHT BY A GLASS PRISM)
41.4 काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण (DISPERSION OF WHITE LIGHT BY A GLASS PRISM) P
सूर्य का श्वेत प्रकाश सात रंगों (बैंगनी, आसमानी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल ) का मिश्रण होता है। जब सूर्य का प्रकाश किसी प्रिज्म से गुजरता है तो वह अपने अवयवी रंगों में विभक्त हो जाता है। इस घटना को वर्ण विक्षेपण कहते हैं।
परदा
वर्ण-विक्षेपण की घटना को चित्र 11.8 में प्रदर्शित किया गया है। इस प्रकार से उत्पन्न विभिन्न रंगों के समूह को स्पेक्ट्रम (spectrum) कहते हैं। इस स्पेक्ट्रम के एक सिरे पर लाल तथा दूसरे सिरे पर बैंगनी रंग होता है। इन दोनों सिरों, लाल तथा बैंगनी रंगों के बीच में असंख्य प्रकाश किरणों का रंग अविरत रूप में बदलता जाता है। सामान्यतः हमारी आँख को ये रंग सात समूहों के रूप में दिखाई देते हैं। प्रिज्म के आधार की ओर से ये रंग बैंगनी (Violet), आसमानी (Indigo), नीला (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) तथा लाल (Red) के क्रम में होते हैं। इन रंगों के इस क्रम को अंग्रेजी भाषा के शब्द VIBGYOR (विबग्योर) से याद रखते हैं। यह अंग्रेजी भाषा के शब्दों के पहले अक्षर से बना है। हरा
लाल नारंगी
पीला
नीला आसमानी
ROYGBI>
श्वेत किरण
प्रिज्म
बैंगनी
fast: 11.8
जब श्वेत प्रकाश प्रिज्म में से गुजरता है, तो श्वेत प्रकाश में उपस्थित भिन्न-भिन्न रंगों की किरणों में प्रिज्म द्वारा उत्पन्न विचलन भिन्न-भिन्न होता है। लाल रंग के प्रकाश में विचलन सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश में विचलन सबसे अधिक होता है। अन्य रंगों के प्रकाश में विचलन, लाल व बैंगनी रंग के प्रकाश के बीच में होता है। अतः बैंगनी रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे कम तथा लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है। इन रंगों की तरंगदैर्ध्य भिन्न-भिन्न होती है, परन्तु निर्वात् में इनकी चाल समान (3x10 मीटर/सेकण्ड ) होती है।
विशेषः दृश्य प्रकाश की तरंग दैर्ध्य की परास 400-800 नैनोमीटर के मध्य होती हैं।
प्रिज्म द्वारा प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण का कारण (Cause of Dispersion of Light by Prism)
किसी पारदर्शी पदार्थ, जैसे- काँच का अपवर्तनांक प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है। लाल रंग के प्रकाश के लिए काँच का अपवर्तनांक सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश के लिए सबसे अधिक होता है। जब कोई प्रकाश किरण काँच के प्रिज्म से गुजरती है तो वह अपने प्रारम्भिक मार्ग से विचलित होकर प्रिज्म के आधार की ओर झुक जाती है। चूँकि प्रकाश में उपस्थित भिन्न-भिन्न रंगों की किरणों में विचलन भिन्न-भिन्न होता है। अतः लाल रंग के प्रकाश की किरण प्रिज्म के आधार की ओर सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश की किरण प्रिज्म के आधार की ओर सबसे अधिक झुकती है, अतः श्वेत प्रकाश का प्रिज्म में से गुजरने पर वर्ण-विक्षेपण हो जाता है।
आयताकार गुटके में श्वेत प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण नहीं होता है, क्योंकि आयताकार गुटके में से गुजरने पर प्रकाश किरणों का विचलन नहीं होता है। गुटके में आपतित किरण तथा निर्गत किरण परस्पर समान्तर होती हैं, अतः इनका केवल पार्श्व विस्थापन होती है।
11.5 वायुमण्डलीय अपवर्तन (ATMOSPHERIC REFRACTION)
तारे की आभासी स्थिति
तारा
किरण का मार्ग
तारों के प्रकाश के वायुमण्डलीय अपवर्तन के कारण तारे हमारे नेत्रों को टिमटिमाते से प्रतीत होते हैं। तारे का प्रकाश पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक लगातार अपवर्तित होता जाता है। वायुमण्डलीय अपवर्तन उसी माध्यम से होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमण्डल तारे के प्रकाश को अभिलम्ब की ओर झुका देता है, इसलिए तारे की आभासी स्थिति उसकी वास्तवित स्थिति से कुछ भिन्न प्रतीत होती है। क्षितिज के निकट देखने पर चित्र 11.9 में कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होता है। तारे की यह आभासी स्थिति भी स्थायी न होकर धीरे-धीरे थोड़ी बदलती भी रहती है, क्योंकि पृथ्वी के वायुमण्डल की भौतिक अवस्थाएँ भी बदलती रहती हैं। चूँकि तारे बहुत दूर हैं, इसलिए वे प्रकाश के बिन्दु स्रोत के निकट हैं। तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा बदलता रहता है, इसलिए तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है. जिसके कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते है।
चढ़ता हुआ अपर्यंतनांक
चित्र: 11.9
11.6 प्रकाश का प्रकीर्णन (SCATTERING OF LIGHT)
11.6.1 टिण्डल प्रभाव (Tyndal Effect)
निर्वात् में प्रकाश सीधी रेखा में चलता है। जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम (विशेष रूप से गैसीय) से गुजरता है जिसमें अति सूक्ष्म आकार के कण (जैसे धूल के कण, धूम्र आदि) होते हैं तो इन कणों पर टकराकर प्रकाश का कुछ भाग सभी दिशाओं में (कुछ दिशाओं में कम तथा कुछ में अधिक) फैल जाता है। इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। इन कोलाइडी कणों (धूल, धूम्र कणों) के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना को टिण्डल प्रभाव कहते है। वास्तव में प्रकाश का प्रकीर्णन माध्यम के कणों द्वारा प्रकाश का अवशोषण तथा पुनः विकिरण है। प्रयोग द्वारा ज्ञात हुआ है कि लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है।
प्रकाश के प्रकीर्णन पर आधारित घटनाएँ
(Phenomenon Based on Scattering of Light)
11.6.2 आकाश का नीला रंग (Blue Colour of Sky)
जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमण्डल से गुजरता है तो मार्ग में आने वाले वायु के अणुओं, धूल-कणों एवं अन्य पदार्थों के सूक्ष्म कणों द्वारा इसका प्रकीर्णन होता है। बैंगनी तथा नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन लाल रंग के प्रकाश की तुलना में लगभग 16 गुना अधिक होता है। इस प्रकार बैंगनी तथा नीला प्रकाश चारों ओर बिखर जाता है। यह बिखरा हुआ

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